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26 जनवरी,2012 को मेरे द्वारा लिखी गयी कविता ने मुझे ही पढते हुए रुला दिया…

मन सोचता है .....MAN SOCHTA HAI......
मन सोचता है .....MAN SOCHTA HAI......
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एक झंडा नहीं सिर्फ ये

एक झंडा नहीं सिर्फ ये……… इसमें शहीदों के अवशेष हैं….. जिनकी ज़ान की कीमत पे……. खड़ा आज ये देश है……..एक झंडा नहीं सिर्फ ये……..

भूल रहे आज हम ….
शहीदों की कुरबानियाँ….. सुखदेव ….भगतसिंह……
बिस्मिल की जवानियाँ……. देश को क्या दे रहे…हम……….हमपे ये प्रश्न शेष है………एक झंडा नहीं सिर्फ ये……. फले फूले ये हिन्दे चमन ……… शानो-शोकत ये उपर चढे……
कल रहें ना रहें हम…
वतन मेरा आगे बढे……. ज़र्रे-ज़र्रे पे आज भी ….लिखा ये सन्देश है……… एक झंडा नहीं सिर्फ ये…….

मैं तो हूँ बस एक जरिया….. कहना चाहते हैं वो आपसे….
मजमून तो उनका है…. मेरे अल्फ़ाजों में पेश है . ……………… एक झंडा नहीं सिर्फ ये

वो कयामत की स्याह रात …. वतन का उजाला बनी….
सीने पे खायी गोलियाँ…. और देह लहू से सनी …. हम भी कीमत पहचाने… इस में कुछ तो विशेष है… एक झंडा नहीं सिर्फ ये…..

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